gramin arthvyavastha avm panchayati raj

पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम तालुका और जिला आते है भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राजव्यवस्था आस्तित्व में रही है आधुनिक भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गाॅव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राजव्यवस्था लागू की गई।

   संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है 1991 में संविधान में 73 वां सविधान सशोधन आधिनियम 1992 करके पंचायत राज सस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गई है।


  • बलवत राय मेहता समिती की सिफारिशें 1957
  • अशोक मेहता समिति की सिफारिशे 1977
  • ग्राम सभा को ग्राम पंचायत के अधीन किसी भी समिति की जाॅच करने का अधिकार है 


        पंचायती राज पर एक नजर 
24 अप्रैल 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मार्गचिन्ह था क्योंकि इसी दिन सविधान 73 वा सविधान सशोधन अधिनियम 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं केा संवैधानिक दर्जा हासिल कराया गया और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढाया गया था । 

73 वे संशोधन अधिनियम 1993 में निम्नलिखित प्रावधान किये गये है 

  • एक त्रि स्तरीय ढांचे की स्थापना ग्राम पंचायत पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत 
  • गा्रम स्तर पर परग्राम सभा का स्थापना 
  • हर पांच साल में पचायतों के नियमित चुनाव 
  • अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए उनकी जनंसख्या के अनुपात में सीटों पर आरक्षण 
  • महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण 
  • पंचायतों की निधियों में सुधार के लिए उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्त आयोगों का गठन 
  • राज्य चुनाव आयोग का गठन 
  • 73 वा सशोधन अधिनियम पंचायतों केा स्वशासन की संस्थओं के रूप में काम करने हेतु आवश्यक शक्तिया और अधिकार प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को अधिकार प्रदान करता है। ये शक्तियां और अधिकार इस प्रकार हो सकते है 
  • संविधान की ग्यारहवीं अनुसीजी में सूचीबद्ध 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना और उनका निष्पादन करना 
  • कर टोल शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार 
  • राज्यों द्वारा एकत्र करों डयूटियों टोल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण 



         पंचायती राज का सफरनामा 
1946 में संविधान में 16 महिला सदस्य थीं 
1957 में पंचायती राज व्यवस्था की पृष्ठभूमि तैयार हुई 
1957 में बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया। समिति ने पचांयत में महिलाओं भागीदारी की सिफारिश सबसे पहले की थी
1961 में महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति में महिलाओं के मनोनयन पर बल दिया। 
1973 में पश्चिम बंगाल पंचायत अधिनियम में दो महिलाओं के समायोजन का प्रावधान किया गया 
1976 में महिलाओं के लिए गठित कमेटी ने सर्वमहिला पंचायत की स्थापना की मांग रखी। 
1977 में अशोक मेहता समिति का गठन 
1985 में डाक्टर पी वी के राव समिति का गठन हुआ। 
1986 में लक्ष्मीमल सिंघवी समिति का गठन किया 
1994 में पंचायती राज व्यवस्था अधिनियम में संशेाधन कर महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था 
केन्द्र ने 27 अगस्त 2009 को महिलओं का आरक्षण बढाकर 50 प्रतिशत कर दिया । 



   मध्यप्रदेश पंचायत अधिनियम राज व्यवस्था 

1962 में मध्यप्रदेश पंचायत अधिनियम बनाया गया । अधिनियम का उद्देश्य प्रदेश में एकीकरण तथा समान पंचायत व्यवस्था लागू करना था। 
29 दिसंबर 1993 को विधानसभा ने विधेयक पारित कर दिया
1994 में मध्यप्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया 
25 जनवरी 1994 को मध्यप्रदेश पंचायत अधिनियम संस्थापित किया गया 
2001 में पंचायत राज अधिनियम में सशोधन करके इसे मध्यप्रदेश पंचायती राज एंव ग्राम स्वराज अधिनियम बना दिया गया
मध्यप्रदेश में प्रतिवर्ष राज्य के कुल बजट का 31,46 प्रतिशत हिस्सा त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था के लिए रखा जाता है 
जिला पंचायत को 50 लाख जनपद पंचायत को 10 लाख व ग्राम पंचायत को 5 लाख रूपए के वार्षिक कार्य करने के अधिकार है। 
पंचायतों को स्थानीय निकाय अनुदान केन्द्रीय वित्त आयोग केन्द्र की योजनाओं और राज्य वित्त आयोग से धनराशि प्राप्त होती है। 
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